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ग़ज़ल
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ग़ज़ल
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हुनरमंद लोगों की दुनिया
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किस मुँह से
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ये है दुनिया प्यारे
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हाँ कह आए हैं
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कभी तो
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ऐ मेरे पुराने दोस्त
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ओ रे सयाने
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हर फ़न
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तेरी याद करके मरना
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ऐ मेरे वतन
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एक लड़की है नज़र में
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मोहब्बत से तुम तक पहुँचा जा सकता है
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राह-ए-ज़िंदगी का मुसाफ़िर हूँ
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हर एक नज़र में तुम्ही तुम रहते हो
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जब भी किसी मन के पहलू में सवाल आएगा
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शब-ए-इम्तहान
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वक़्त हर ग़म का बादशाह है
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आज सीधे रास्ते हैं
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यौम-ए-ईद
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वो है अभी भी आईना
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आज सनम मेहरबान हुए
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मोहब्बत का तू एक शहर है
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मोरा पी बनवारी
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सूफ़ी उसी का
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ये ज़िंदगी क्या है
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मैं कंदील हूँ ज़रा ख़ास सी
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समंदर के किनारे पर
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बड़े शहरों की बड़ी बिल्डिंगे
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कठपुतली क्यों फिकर करे?
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आज रात बस्ती में दावत होगी
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ये चेहरा कैसा है चेहरा
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सपने असल में बहरे हैं
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मैं आज कैसे समाज में हूँ
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तू यूँ मुझको मिल
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बड़ी सयानी रे दुनिया
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अपना मेहरम कर
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मंज़िले भी कर रहीं हैं तेरा पीछा
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किए जा
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ये बारिश की बूंदें
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इब्न-ए-खालिक़