Nikhil

ऐ मेरी जाँ

ऐ मेरी जाँ
ज़रा एक दफ़ा देख
मैं तुझसे क्या मांगता हूँ
बीते दिनों का वो मन
जो दर्द से अंजान था
वो तमाम लम्हें जब दिल
रंजिशों से वीरान था
चेहरे पर आती वो हँसी
न मोहताज थी जो वजह की
मासूमियत की दिलकशी
जो गवाह थी ख़ुदा की
मेरी जज़्बों भरी आँखें
जो देखती थीं दुनिया को ऐसे
देखता हो कोई महबूब
की गहरी आँखों को जैसे
ज़रा से से जब दिल बहल जाता था
दो निवालों में सुकून जब सहल आता था
कसक रातों में जब जगाती न थी
आज कल की फ़िक्र जब सताती न थी
वो, वही दिल के हाल की आस है तुझसे
कि जब ये दिल दुनियावी न हुआ था
बचकाना था मगर बेईमानी न हुआ था
तू देख तो ज़रा मैं तुझसे
ये क्या मांगता हूँ
ख़ुदा की क़सम मैं तुझ को
मेरा ख़ुदा मानता हूँ…