आज रात बस्ती में दावत होगी
सुबह जाते बाबा बोले है
आज रात बस्ती में दावत होगी
हम आम फ़हम हस्तियों
की टूटी झरती सी बस्ती का
आज ग़म पता खोएंगे
हम आज बिना रोये सोयेंगे
आज माँ के हाथ चूल्हे
से झुलसेंगे नहीं
आज बाबा अच्छे कल
पर टरकाएँगे नहीं
हम एक पूरी रोटी अकेले खाने में
आज कतराएँगे नहीं
आज रात हमारी त्योहार सी होगी
गहरी काली रात आज डरा ना पायेगी
आज मज़े से हम सड़क का शोर सुनेंगे
आज कानों को पेट की आवाज़ ना आएगी
क्या पता आज बाबा शरबत भी लाये
हम घूँट घूँट उसे पीकर
हर बीती रात भुला देंगे
हर घूँट आज तेज़ाब सा गटकेंगे
दिल पर जमा हर दर्द जला देंगे
आज रात हमारी रात सी होगी
खाने के बाद कुछ बात भी होगी
आज बहुत अरसे बाद जाकर
नींद से हमारी मुलाकात भी होगी
सपने हमारे भी सपने से होंगे
बातें हमारी भी चाँद से होगी
आज रात हमारी रात सी होगी
आज बस्ती के हर कोने में
थोड़ी सी सजावट होगी
सुबह जाते बाबा बोले है
आज रात बस्ती में दावत होगी