Nikhil

आज सनम मेहरबान हुए

आज सनम मेहरबान हुए
पल भर बे-निगहबान हुए
अज़ल सी मासूमियत जगी
फ़ज़ूल, कल के अरमान हुए

बरसों इंतज़ार में बिता
घड़ी भर, आज एक दफ़ा
महबूब के खरे जमाल की
झलक आँखों ने देख ली
नूर-ए-हुज़ूर यूँ चमक उठा
मेहर-ओ-माह सब आम हुए

प्यास-ए-नूर कुछ यूँ उठी
रूह सवर कर जवाँ हुई
मैं अक्स हूँ किसका, जान लिया
रूबरू हाज़िर तमाम हुए

राज़ सनम का खुल गया
सबब हुस्न का मिल गया
थे पर्दानशीं जो अब तलक
आज बेपर्दा सर-ए-आम हुए

आज सनम मेहरबान हुए
पल भर बे-निगहबान हुए…