Nikhil

अपना मेहरम कर

मैं कब से सराए बदल रहा हूँ
किसी का रंग अच्छा
किसी का बाम
बदलते रहे इलाके
बदलता रहा नाम

कहीं ठहरने न मिला ज्यादा
हर बार रहा कुछ आधा

ना जाने कब से चल रहा हूँ
बिसर गया कहा कल रहा हूँ
मुझे भूल गया में कहा से हूँ
ना जाने मैं क्यों चल रहा हूँ

कुछ मुबारक हमको भी हो
मयस्सर फहम हमको भी हो
जाने हम भी घर का रास्ता
कुछ चैन मुबारक हमको भी हो

अब तड़पना बहुत हुआ
निस-दिन भटकना बहुत हुआ

अब शाह-ऐ-आलम बुला ले
क़दमों में अपने सुला ले
हमें अपना मेहरम करे
इस सफर से हमें बचा ले