Nikhil

ग़ज़ल

मैं झोके सा हूँ वो ख़ुशबू सी हैं
मैं हिंदी सा हूँ वो उर्दू सी हैं

तीखी तलवारों की जो धारें हैं
बिल्कुल तेरी पैनी अबरू सी हैं

उस की सूरत तो फूलों सी है ही
बातें भी उस की रंग-ओ-बू सी हैं

जो भटका दे हर आते राही को
ये तेरी आँखें उस ही सू सी हैं

ग़म हो या की हो मौसम रंगों का
हँस कर बहती साँसें अब ख़ूँ सी हैं