Nikhil

किए जा

कुछ दिन की बात है, बस कुछ दिन जिए जा
कुछ और खुदको भूल, दुनिया के लिए किए जा

तमाशा-ए-इबादत का खूब है तक़ाज़ा
सभी कर रहे हैं यहाँ, तू भी किए जा

दिल्लगी को आज मोहब्बत बताता है ज़माना
तू वस्ल-ए-यार है चाहता, तो दिल्लगी किए जा

दुश्वार है पाना मक़ाम-ए-क़ाबिल-ए-तारीफ़
लगा रह मश्क़ में, दिन को रात किए जा

सफर में ज़रा भी मुश्किल ना होगी निखिल
जो ज़माना है चाहता, बस वही बात किए जा