मैं कंदील हूँ ज़रा ख़ास सी
मैं कंदील हूँ ज़रा ख़ास सी
मैं महकू मुश्क-ए-गुलाब सी
मैं अहल-ए-तराशी का पैमाना
मैं जलूँ नूर-ए-आफ़ताब सी
वो साँचा अना से फुट गया
जिस से तराशी मेरी हुई
वो आईना हसकर टूट गया
जिस में दीदारी मेरी हुई
लौ बाज़ार में बिकती कई है
गाहक सभी के मिलते कहाँ
मैं जलूँ जहां लगे हुजूम वहाँ
इस मंज़र के शाहिद कई है
मुझे देख़ शमादान का सवरना
मेरा पिघलना सबका बिखरना
मेरी लौ है अंधेरों की मौत
मेरी मोम छूना अवाम का निखरना
मैं सब कुछ हूँ पर मैं कुछ नहीं
उम्र का तौफ़ा मेरे नसीब नहीं
जलना मेरा काम जलना मुक़द्दर
मैं कंदील हूँ कोई रब नहीं