Nikhil

मंज़िले भी कर रहीं हैं तेरा पीछा

मायूसी से सिर क्यों है नीचा
मंज़िले भी कर रहीं हैं तेरा पीछा

पग-पग इस सफर में तू
मंज़िलो के लिए परेशान है
इन हवाओं में कानून है जिसका
तू सदा उससे अंजान है
यहाँ केवल तू ही नहीं
जिसने उम्मीदों की
नावों को हे खींचा
मंज़िले खुद भी कर रहीं हैं तेरा पीछा

दूर-दराज़ गुफाओं में
एक लौता ख़ालिक़ रहता है
पल-पल वह आकर दिल में
राहों की सदाएँ देता है
मंज़िले थमि सी दिखती मगर
है वह भी एक सफर पर
तुझसे मिलने वह बेताब है
बस तू श्रम कर, तू सबर कर
बे-वजह तूने आँसुओं से
क्यों है नैनों को सींचा
मंज़िले भी कर रहीं हैं तेरा पीछा

मायूसी छोड़ जो आज चला
वही कल इस दौड़ में जीता
वक्त सिखाता है जो सीख
और भूला दे जो है बीता
मंज़िल भी मंज़िल तब है
जो टोह में सच्चे राही हो
तू वह राही बन
तू मंजिलों का सहायी बन
खुद को तू आँक ना नीचा
तेरे होने से ही मंज़िल है
तेरे चरित्र का करेगी वह पीछा
मायूसी से सिर क्यों है नीचा
मंज़िले भी कर रहीं हैं तेरा पीछा