Nikhil

मोहब्बत का तू एक शहर है

मोहब्बत का तू एक शहर है
मैं उस में रहती सड़क हूँ
मैं तुझमें ही खुलती हूँ चाहे
जाती भले जिस तरफ़ हूँ

जो मुझसे गुज़रना है चाहता
वो तुझसे हो कैसे बेगाना
मैं तेरी नुमाइश का ज़रिया
तू मेरे बसर का बहाना

क़स्बे से शहरों सा होते
देखा है मैंने तो तुझको
था तब भी तू नज़रों में मेरी
था तब भी पसंद तू मुझको

मैं टूटी हूँ जितनी दफ़ा भी
तेरी चाहत से फिर से बनी हूँ
तू थम जाए, जो मैं ना दौड़ू
तेरी ऐसी मैं आदत बनी हूँ

मोहब्बत का तू एक शहर है
मैं उसमे रहती सड़क हूँ