Nikhil

मोहब्बत से तुम तक पहुँचा जा सकता है

रूह बन कर तुम मुझ में रहते हो
या ख़ल्क बनकर मैं तुम में रहता हूँ
ये समझना ज़ेहन का काम है
ज़ेहन की भी पर हद है आख़िर
उसका मुझ से आगे कहाँ नाम है
तुम तक तो कोई सोच भी नहीं जाती
कोई बात तुम्हें समझा नहीं पाती
ठीक भी है, इन सबसे आगे रहना तुम्हारा
ये इंसानों की बातें हैं
ये इंसानों के तरीक़े हैं
तुम तो तब भी थे जब इंसान नहीं था
फिर ऐसा क्या है, जो जहाँ तुम थे, वहीं था
वो इश्क है वो मोहब्बत है
जहाँ जहाँ तुम्हारा साया हुआ
वहाँ वहाँ इश्क सरमाया हुआ
बेशक तुम्हें न सोचा जा सकता है मगर
मोहब्बत से तुम तक पहुँचा जा सकता है