Nikhil

मोरा पी बनवारी

प्रेम रंग मोरे अंग समायो
लाल जगत मोहे प्रेम दिखायो
प्रीत सरोवर मन के प्याले
लाज शरम मोरी सजन हवाले

कैसे अपनी सार सुनाऊ
कैसे अपना रंग दिखाऊ

जी बत्तियाँ ना शब्द समाए
जी की भाषा मौन कहाए
आँगन मोरे जो भी आए
सजन सुरत्तिया नैन दिखाए

श्वेत रंग पर दुनिया वारी
श्याम रंग की मैं मतवारी
सकल अक्ल मैं पी पर हारी
सहज चलन मोरा पी बनवारी