Nikhil

राह-ए-ज़िंदगी का मुसाफ़िर हूँ

राह-ए-ज़िंदगी का मुसाफ़िर हूँ
मैं नहीं जानता कि हासिल क्या है
ख़म-ब-ख़म, जा-ब-जा
मारे मारे फिरते है
क्या करें जब पहचान ना हो
कि मंज़िल होने के क़ाबिल क्या है

हाल-ए-दिल-ए-राहगीर क्या हो
जब उसको इल्म-ए-जहाँ हो
कि सर-ए-राह तो है मगर
नहीं मालूम कि मंज़िल क्या है

है राह जिसकी, सुना है उसके बारे
बड़ा क़रीम, बड़ा नवाज़ है
गर है एसा, फिर क्या परवाह
कि राह कैसी है, मंज़िल क्या है

राह-ए-ज़िंदगी का मुसाफ़िर हूँ
मैं नहीं जानता कि हासिल क्या है
है जिसकी ये राह वो जाने
कि राह-रौ की मंज़िल क्या है

I am a traveler on the road of life
I don’t know what the result would be
Turn by turn, place by place
Wandering aimlessly
What can one do when there is no sense
Of what’s worthy of being chosen as destination

How would be the traveler’s heart
When he gets to know of the world
That he’s already out walking
But don’t know what the destination is

It is said that he, whose path this is
Is kind and merciful
If so, then why worry
About how the path is, what the destination is

I am a traveler on the road of life
I don’t know what the result would be
He, who owns path, let him take care of
What the traveler’s destination should be