सपने असल में बहरे हैं
ये रोज़ रात दरवाज़े पर
आकर खटखटाते हैं
मैं हर बार इन्हें भगा कर
फिर से सोने जाता हूँ
इन्हे हर बार जाते देख
मैं ये सोचते जागता था
कि बड़े ही बेशरम हैं ये
मैंने कहा इन्हे इतनी दफ़ा
कि नहीं है यहाँ कोई जगह
यहाँ पहले से लोग रहते हैं
एक मेरा पेट भरता है और
एक समाज में मेरी इज़्ज़त रखता है
यहाँ तुम्हारे लिए
कोई जगह नहीं है
यह कहकर हर रात मैं इन्हे
भगाता हूँ
ये ढीठ हैं इतने कि फिर
अगली ही रात चौखट पर
बैठे नज़र आते है
अब जाकर मैं ये समझा हूँ
कि सपने असल में बहरे हैं
ये हर दिन मेरे इशारे देख
शायद सोचते हैं कि आज मैं
ज़रा काम में मसरूफ हूँ
तो अगले दिन फिर आ जाते हैं