शब-ए-इम्तहान
मैं देखूँ, तू सोता या खोता है शब को
चाहत की दौलत, शराफ़त के मानी
गहरा अँधेरा है, साया भी गुम है
उलझें ख़यालों में, काया भी गुम है
मुश्किल है माना, पल पल बिताना
इस नाज़ुक घड़ी से, बनेगा फ़साना
देखूँ तू रुकता या झुकता है इस पल
मिटता है या सहता है मन की हलचल
फिरी है ये दुनिया, मुड़ा आसमाँ है
था पहले जहाँ सूरज, वो अब भी वहाँ है
मैं देखूँ तू सोता है, सवेरे का बन कर
या लाता है बिकते चिराग़ों को घर पर
है निभाता सुबह से तू अपनी क़सम
या सुलगाता है लौ में अपना ज़िस्म
टिका इस ही लम्हे पर अपना निशान है
फ़क़त शब नहीं, ये शब-ए-इम्तहान है
I’ll see, if you sleep or lose tonight
The wealth of love, the meaning of innocence
It’s a deep darkness, even the shadow is lost
In the entangled thoughts, the mind is lost
I know it’s difficult, to spend every moment
But this delicate moment, is what will define our story
Let me see, if you stop or give up to this moment
Resist the turmoil of the mind or get destroyed by it
World has turned and the sky has turned around
But where the sun used to be, it’s still there now
I’ll see, if you sleep being loyal to the morning
Or you bring home the candles sold in the market
If you fulfil your promise to dawn
Or burn your body in the flame of these candles
On this very moment, our existence is dependent
It’s not just any night, it’s the night of the trial