तुझे रखूँ
ख़ुशबू सी आ तू एक दफ़ा
मैं फूल सा तुझे रखूँ
तू खिल के हो ज़रा सी दूर
मैं पास ला तुझे रखूँ
जिस तरह से शाख़ पर
जचता है खिलता एक फूल
रात दिन मेरी पलकों पर
वैसे खिला तुझे रखूँ
है बारिशों में छीनते
फूल को क़तरे कई
रखती है शाख़ जैसे बचा
वैसे बचा तुझे रखूँ
रात से नाराज़ हो
गर सोता है गुल रूठ कर
मनाती है जैसे सुबह
वैसे मना तुझे रखूँ
सर्दियाँ जो फूल को
निखारती हैं हर सहर
उस तरह मैं ओस से
तुझको सजा तुझे रखूँ
दुनिया से थक हार कर
नींदों का इंतज़ार कर
सोती हैं उन आँखों के
मैं ख़्वाब सा तुझे रखूँ
तक़दीर का ये कहना है
तुझे मेरे संग ही रहना है
मेरी जाँ में जाँ न हो तो क्या
मेरी जाँ बना तुझे रखूँ