तुम ही तो थे
चुप अकेली रातों में
अधूरी रही बातों में
किसी भरी महफ़िल में
सालों के वीरान दिल में
किसी साथी की आस में
कभी न बुझती प्यास में
किसी मज़े की चाहत में
दूर से आती आहट में
किसी की पुकार में
कभी यूँ ही बेकार में
किसी मासूम सवाल में
तलब में डूबे हाल में
बेमतलब कुछ करने में
कभी आहें भरने में
कहीं गुलाब को देखने में
किसी जाते को रोकने में
कभी जगी परवाह में
उदास सूनी राह में
उम्मीद भरे कल में
जान-अनजाने हर पल में
मैंने ढूंढा जिसे असल में
वो तुम ही थे, तुम ही तो थे…