Nikhil

वक़्त हर ग़म का बादशाह है

वो ग़म
जो ना जाने कितनी नींदों का क़ातिल था
वो ग़म वक़्त के हाथों मारा गया
एक वो दिन थे जब इस ग़म में हम, खोए रहा करते थे
एक आज है कि ये ग़म, और ग़मों में कहीं खो गया है
वक़्त ज़ाहिरी चीज़ों का ही नहीं
ग़मों का भी क़ातिल है
दर्द एक सरीका मिलता रहे
तो दिल-ओ-जाँ, दर्द से हमदर्दी कर ही लेतें हैं
जैसे हर बाहरी चीज़, आरज़ी है
हर ग़म भी आरज़ी ही तो है
आज का ग़म, कल के ग़मों से निखरा हुआ होता है
कल के ग़म, इस नए क़िस्म के ग़म से कहाँ लड़ पातें है
मगर, वक़्त हर ग़म का बादशाह है
वक़्त की शहंशाही, अज़ल से हश्र तक है
इसे नज़रअंदाज़ किया जा सकता है
पर आज ना कल, वक़्त सुबूत के साथ
अपनी बादशाहत साबित कर ही देगा