यौम-ए-ईद
माह-ए-रमदान आज पूरा हुआ
हर एब-ओ-बैर का चूरा हुआ
नब्ज़-ओ-ख़याल आज बस में है
ख़ुमार-ए-इबादत नस नस में है
थी बेबसी, जो शरीरी सब
जुनूँ के आगे, नाकाम है अब
भूक-ए-पेट, प्यास-ए-हलक़
तलब-ए-जिस्म, आरमाँ-ए-फ़लक
सब चाहतें आज पिघल गई
ख़ुशबू-ए-इबादत सब निगल गई
ना मैं रहा, ना जग रहा
नबी का बोला सब रहा
पाक ज्यों ही ज़िस्म हुआ
नज़र को दीद-ए-रम्ज़ हुआ
नबी की बातें छाने लगीं
मुझको समझ में आने लगीं
अर्श-ए-फ़लक से उतर के हक़
की परछाई नज़र में आने लगी
आज ख़ुश-आमदीद है
आज उम्मीद-ए-दीद है
आज यौम-ए-ईद है