ये चेहरा कैसा है चेहरा
ये चेहरा कैसा है चेहरा
लगता जैसे प्याज़ सरीखा
परत दर परत रंग बदलता
आसूँ भरे ग़ुब्बारे सरीखा
एक चेहरा मैंने आज देखा
गिरगिट से उम्दा फनकार देखा
सुबह कुछ रंग चढ़ गया
शाम आते रंग ढल गया
रात आते आते तो जैसे
वखरा ही रंग पड़ गया
चेहरा एक विकसित नक़ाब है
पल में सफ़ाई से तब्दीली
बख़ूबी करना जानता है
कोई पकड़े सफ़ाई जो इसकी
तो एक ना उसकी मानता है
ये असलियत छिपाना जानता है
चेहरा साउंड प्रूफ भी है
ये बाहर से ठहरें तालाब सा
अंदर झाको तो उमड़ते झरने सा है
विरला ही कोई हुनर चाहिए
उमड़ते झरने को शांत तालाब सा
नज़र आने के लिए
शोर में मौसीक़ी
बनाने के लिए
बड़ा पेचीदा काम है
इसको पढ़ना
कि जब ये उदास हो या कि
जब ये मुस्कुराता हो
इसके साथ ये भी जानना होता है
कि कब ये सच है और कब झूठ