Nikhil

ये ज़िंदगी क्या है

ये ज़िंदगी क्या है
कुछ अनकिए वादे निभाते चले जाना
किसी छोटी सी बात पर नज़र भर आना
किसी बेसूद रिश्ते को पुरज़ोर निभाना
कभी खल्वत में बैठे यूँ ही बिखर जाना
ये तमाम ज़िम्मे लिए
साँस चढ़ती उतरती है
वो क्या है जो इसे रुकने नहीं देता
दम भर को भी थकने नहीं देता
वो शायद कुछ लोगो की मुस्कुराहट है
वो शायद कोई जानी पहचानी आहट है
वो शायद तुम्हारे लिए किसी की इबादत है
वो शायद बुराई से ढकी सजावट है

रक़म राएगानी के हिस्से करूँ कुछ
तो ज़िस्त की रानाइयाँ आवाज़ लगाती हैं
जो क़ायल ज़रा हूँ ख़ुशी ए हयात का
तो ज़िम्मेदारिया सुकून नोच खाती हैं

भला क्या कहें कि ज़िंदगी क्या है
यह आज मेहरम कल बेपरवाह है

किसी को गर यह दे कोई पयाम
तो बताना मुझे भी इसका बयान
ख़ुशी की वजह और ग़म के सबब
पेशानी से ज़माने में इतना अदब
यह आख़िर क्या है
भला ज़िंदगी क्या है