Nikhil

ये है दुनिया प्यारे

वो शाखें कट गईं
जिन्होंने फूल न दिए
वो राहें बँट गईं
जिन्होंने सूद न दिए

नज़र-अंदाज़ हुए वो आसमान
सहे जिन्होंने सूरज के सख़्त वार
ना सराहे गए वो किनारे जो
रोके हुए थे नदियों की तेज़ धार

ये है दुनिया प्यारे
जिसके लिए तू मरे बार-ओ-बार

तने वो तनहा खड़े
हुए थे पतझड़ में जब
कोई क़रीब न आया तब
जो आई बहार और ज़रा खिले
तो तस्वीर लेने दौड़े सब

ये है दुनिया प्यारे
जिसके लिए तू भूले अपना सब

वो मुरशिद जिन्होंने दी
अक्षर मात्रा की समझ
जो शब्द बनाने आए
तो वही हुए नासमझ

जब थी बनारस बहती
था दूर से आता हर दूजा
जब मिली समंदर से जाकर
तो किसी ने हाल न पूछा

ये है दुनिया प्यारे
इसने वक़्त देख कर पूजा

ये है दुनिया प्यारे
यहाँ ज़रूरतों के मारे
बन बेचारे सारे
करें उगते सूरज को सलाम
इन करतूतों से दे पयाम
यहाँ ज़्यादा न हो क़याम