यूँ ही बिता लेते हैं लोग
अपने बदकार ख़्यालों को
मोहब्बत का नाम देते हैं लोग
इस रूहानी लफ़्ज़ को अब
टके के दाम लेते हैं लोग
दिल में रख कर किसी को
आँखें और को ढूँढ़ती हैं
अपनी तलब मिटाने को
नए इंतज़ाम ढूँढती हैं
अपनी हवस बुझाने को
क्या कर गुज़रते हैं लोग
मासूम अनजाने दिल को
चालों से बेगाने दिल को
बातों की नरमी से
कुछ झूठी करनी से
अपना बना लेते हैं लोग
दिल जो बचकाना होता है
कैसा दीवाना होता है
ऐसे ख़ूबसूरत दिल में भी
दर्द सजा देते हैं लोग
ऐसे में कैसे फिर कोई
मोहब्बत का एतबार करे
क्या भला बाज़ार में एसे
वफ़ा का इंतज़ार करे
कोई चाहे दिल लगा कर
कि अक़्ल का इस्तेमाल करे
अपने किए सुलूक से एसे
दुनिया के रिश्तों को कैसे
तल्ख़ बना देते हैं लोग
अब बे-रूह बातों से बस
यूँ ही जता देते हैं लोग
अब मोहब्बत का होना क्या
अब यूँ ही बिता लेते हैं लोग